जल में था इक बुलबुला कुछ भी न था

जल में था इक बुलबुला कुछ भी न था ज़िन्दगी का फलसफ़ा कुछ भी न था   क़ैद थी, दुनिया मेरी मुट्ठी में थी क़ैद से बाहर हुआ कुछ भी न था   कितने पर्वत थे हमारे बीच में सोचिए तो फ़ासला कुछ भी न था   मैं निमन्त्रण तो तुम्हें देता मगर मेरा घर … Continue reading जल में था इक बुलबुला कुछ भी न था